मै बस्स
नींद में बहली
मै बस्स ख्व़ाब में चली
मै पारिजात की डाल
पर कांपती कली
स्नेह के दुश्मन
काँटों संग पली
और प्रेम!
तुम मुझे नहीं मिले
प्रेम तुम कृष्ण ही रहे ……
तुम्हे कल्नाओं में जीती
सचमुच में आंसू पीती
जीवन डगर पर
एकाकी बढ़ती रही
और प्रेम!
तुम मुझे नहीं मिले
प्रेम तुम कृष्ण ही रहे ……
सोचती रही
राह ख़त्म होगी
और बस एक अगले मोड़ पर
तुम और मै
पर तुम कहाँ!
और प्रेम!
तुम मुझे नहीं मिले
प्रेम तुम कृष्ण ही रहे ……
अब सोचती हूँ
वह खुशबू
जिसके सहारे काटे मैंने दिन
वह धुन जिससे
पाया मैंने आत्मबल
वह टेक, वह सहारा
वह सांझ, वह किनारा
वह तुम थे
जो बहलाते रहे मुझे
मुझसे दूर खड़े
बिना कुछ पाने की आशा में
पर मेरे खुशी के दिनों में
मुझसे दूर
और प्रेम!
तुम सचमुच
कृष्ण ही रहे ……
- सहबा
krishn bhagwaan ka metaphor
ReplyDeletebadhiya hai.......