सियासी गुफ़्तगू यूँ मत मनाओ ईद रहने दो
बेनूरो रंगों बू यूं मत मनाओ ईद रहने दो
न चाहत है, न राहत है, न साईत भी है चन्दा की
ऐसे बेसुकूं यूं मत मनाओ ईद रहने दो
इबादत चाँद रातों की, वह भी सब्र के एवज़
है आबिद बेवुज़ू पर , यूं मत मनाओ ईद रहने दो
गले मिलते थे गलियों में खुलूसे दिल से ज़ाहिद तुम
इतनी बेदिली! यूं मत मनाओ ईद रहने दो
कोंई झगड़ा नहीं टोपी का नारंजी के रंगों से
क्यों दिल में है ख़फ़गी, यूं मत मनाओ ईद रहने दो
न हो सुफ़ैद तो जोगिया ही रंग तुम ओढ़ लो यारों
बेरंगीं पर ख़ुदारा यूं मत मनाओ ईद रहने दो
- सहबा जाफ़री
बहुत सुंदर । बधाई
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