खुश हो न तुम ,
अल्लाह मियाँ की जन्नत में तो सुना है, सब खुश ही रहते हैं। अम्मा को शायद कभी कभी याद करते होगे, (ऐसा मुझे लगता है , क्योंकि कभी कभी बेवजह तुम्हारी नन्न्हीं आँखें भरी हुई दिखती हैं) मगरअम्मा को तो तुम हर वक़्त बहुत बहुत याद आते हो. जब भी किसी खिलौने की दुकान के नज़दीक से गुज़र होती है, तुम अपनी माँ पर पूरी तरह छा जाते हो. कल तुम्हारे लिए " नन्न्हीं सी बत्तख माँ " खरीदी और पास खड़े छोटे से बच्चे को बाँट दी। उसकी माँ उसे खिलौने नहीं दिला सकती न, वह बहुत गरीब है बेटू! मगर तुम्हारी माँ तो उससे भी ज़्यादा गरीब है, क्योंकि तुम तो उससे बहुत दूर हो.
मेरे चाँद ! तुम्हे पता है, कल तुम्हारी ममा ने क्या किया ! तुम्हारी याद में नन्हे नन्हे से बच्चों के लिए पेंसिल्स और बुक्स खरीद के दी. वही सारी पेंन्सिल्स जो शायद तुम मां के पास होते तो मचल मचल कर मांगते, वही सारे चॉकलेट्स , फ्रूट्स , शूज़ और ड्रेसेज़ जो माँ तुम्हारे लिए खरीदती। कल तुम्हारे लिए कितने सारे चॉकलेट्स बांटे, सच्ची!!! मज़ा आ गया। फिर रात पड़े , वही अकेले घर में सूना सा पालना , जो माँ ने तुम्हारे लिए खरीदा था, उससे लिपट माँ के आंखॉ से कितनी देर आँसू निकले , तुम्हे तो अंदाज़ भी नही. नन्हे नन्हे कपडे, छोटे छोटे स्वेटर, प्यारे प्यारे शूज़ , सब के सब तुम्हारी अम्मी जान ने तुम्हारे लिए खरीद के रखे थे, सब के सब माँ को कितना रुलाते हैं, तुम तो अंदाज़ भी नहीं लगा सकते, और वह सपना! जिसमे तुम नीम के घने से दरख्त के नीचे ,अपने नन्हे मुन्ने पैर बनाते भाग रहे हो, और मैं ! तुम्हे कितनी मोहब्बत से देख रही हूँ, वह भी तो अधूरा रह गया न प्यारे! कितना कुछ , तुम्हे अपने हाथों से खिलाने - पिलाने का सुख, तुम्हारे लाड उठाने का सुख , और तुम्हे गोदी में ले , दुलराने का सुख सब जैसे एक पल में ही गुम हो गया। तुम्हे पता है, जब तुम मेरे अंदर आकार ले रहे थे, सुबह उठ कर चिडियों की आवाज़ें सुनने का मुझे जैसे शौक हो गया था. तुम तो मुझे छोड़ गए पर चिड़ियें अब भी मुंडेर पर आती हैं, सब की सब तुम्हारी माँ की सहेलियां हैं, मै अब भी उन्हें प्यार करती हूँ , तुम्हारे लिए. तुम्हारे आने की खबर पर रोपे पौधों में अब सब्ज़े फूट गए हैं, पर तुम्हारी माँ की आस की कोपल तुम्हारे न आने से मुरझा गयी है। मगर तुम घबराना मत। तुम्हारी माँ ज़िंदा है, खुश रहने की भी कोशिश करती है. आसपास के सारे बच्चों से मोहब्बत करती है, उन सबमे अपना आप गुम कर देना चाहती है , आखिर वह तुम जैसे बहादुर बच्चे की मम्मी है, जो बहुत सारे बच्चो को प्रेम मिले इसलिए अपनी मम्मी को छोड़ कर बहुत दूर चला गया है. बस आसमान में चन्दा बन , दूर से अपनी माँ को देख कर खुश होता है. मै भी सारे बच्चों से प्रेम करती हूँ, तुम्हारे लिये।
सुनो! खुश तो रहते हो न वहाँ ! मैंने सुना है, दूध की नहरे, टॉफ़ियों की दीवारें , खेल -खिलौने, परियाँ, मज़े मज़े के लोग, हरियाली सब है वहां ! अल्लाह मिया सब का बड़ा ध्यान रखते हैं, किसी को माँ की याद नहीं आती। फिर भी माँ की जान ! मुझे तुम्हारी फिक्र होती है, कौन तुम्हे नहलाता होगा, किस से ज़िद करते होगे, कभी कभी कोई खाना अच्छा नहीं लगता , तब क्या करते होगे!!! कहीं भूखे तो नहीं सो जाते! सर्द में रूठ कर , बिना लिहाफ ओढ़े पूरी रात तो नही पड़े रहते , कभी कोई फरिश्ता मनाने आता है, या उस वक़्त माँ की याद आती है. और दौड़ने ,भागने और दूर चले जाने की तो तुम्हे बहुत आदत है,( तब ही तो कोख से क़ब्र तक का फैसला मिनटों में तय कर गए ) देखो! खेलते खेलते कहीं अल्लाह मियाँ के बगीचे से भी बहुत दूर मत निकल जाना , वर्ना कहीं ऐसा न हो कि उनकी पहुँच से भी……
अच्छा जानां ! खुश रहना , वहाँ सबको परेशान मत करना और बहुत याद आये तो, अल्लाह मिया से कहना "अब माँ को भी बुला लो, मुझे याद आती है." और शाम को चाँद के हाले से , जो नूर की चिट्ठियाँ भेजते हो न! उन्हें लिखते रहना , उनसे तुम्हारी माँ को बड़ी स तसल्लियाँ मिलती हैं , लिखते रहना।
औरक्या लिखूं, बहुत सारी बाते हैं, मगर सुबह उठ कर स्कूल भीजाना है, अपना ध्यान रखना और तुम्हारे सब साथियों को मेरा प्यार देना . मुझे विश्वास है, एक दिन हम मिलेंगे। प्यार।
तुम्हारी
मम्मी
Bahut bhawpoorna. Apni maa ka chehra dikhta raha padhte huye. Isse behtar aaj kuch aur nahi padh sakta tha. Jitni tareef ki jaaye kam.
ReplyDeleteshukriya
Deleteshukriya
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (17-11-2014) को "वक़्त की नफ़ासत" {चर्चामंच अंक-1800} पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
zaraa nawazi ka shukriya janab...
Deleteबहुत मार्मिक।
ReplyDeleteमन द्रवित हो गया।
गूगल फॉलोवर का विजेट भी लगाइए इस ब्लॉग में।
ReplyDeleteapka hukm sr aankhon pr..... :)
Deleteबहुत बेहतरीन और मर्मस्पर्शी ! नम आँखों से यह चिट्ठी पूरी पढ़ना नामुमकिन सा हो गया था ! बस इतनी ही दुआ कर सकते हैं कि ऊपर वाला सब्र दे ! गहराई तक मन को उदास कर गया यह खत !
ReplyDeleteचंद कतरा आंसू..उदास उदास सा मन...भावुक हो उठा हृदय....चिठ्ठी पढ़ी जिस क्षण .....!!!
ReplyDeletelafz me dhadkane rakhne ki chhoti c koshish hai bas......
Deleteमन द्रवित हो उठा ..
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति ....
thnx
Deleteबेहतरीन मार्मिक प्रस्तुती ........
ReplyDeleteshukriya
ReplyDeleteमर्म को छू गयी आपकी पाती ...
ReplyDeleteDil ko chhu gyi...
ReplyDeleteबेहद मार्मिक !
ReplyDeleteAnkho Ko gila kargayi
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