दीप्ति पूरा दिन लिपाई पुताई कर सिसकती रही, बच्चों को खाना दे होमवर्क करवा ट्यूशन भेजा, कचरा साफ़ कर रांगोली डाली, नहा धो, बेडरूम साफ़ कर लेट गयी। नहीं खाया तो बस खाना।
सर में दर्द , लगता था जैसे , माईग्रेन ने आ जकड़ा।
शाम हुई , प्रसाद जी आये ,देखा बत्ती बंद है, मिकी चिंकू अपने कमरे में पढ़ रहे हैं , दीप्ती सो रही है। हौले से कमरे में गए, धीमे से दीप्ती के बालों में हाथ फेरा। " दीप्ती! तुम्हारी तबियत तो ठीक है न!" जानता हूँ काम के टेंशन में कुछ खाया भी नहीं होगा "
धीमे धीमे सर दबाते प्रसाद ऐसे लग रहे थे जैसे मिकी , चिंकू से भी छोटे बच्चे हों। दीप्ती जो शाम को ही मायके जाने का प्रण ले बैठी थी बड़ी बड़ी आँखों से अचरझ से उन्हें देख रही थी, और वह उसके लिए खाना ऐसे लगा रहे थे, मानो करवाचौथ का व्रत खुलवा रहे हो।
मिकी अपने मोबाइल के गाने सुन रही थी , धीमे धीमे प्रसाद भी गुनगुना रहे थे, " मैं रंग शर्बतों का…… "
-सहबा
a true story of now a days busy life
ReplyDeleteyathaarth vachan
ReplyDeleteऐसे ही अहसासों में बीत जाती है जिंदगी
ReplyDeleteकाफी उम्दा रचना....बधाई...
ReplyDeleteनयी रचना
"जिंदगी की पतंग"
आभार
sb kuchh sahi likha hai. bde hi ajeeb pr azeez hai ye rishte ye ghr ye priwar.........aur ye pati-patni ke rishte. kbhi asahneey lgne lgte hain aur kbhi bahuuut pyare.
ReplyDeleteekdmmm sach .....sb kuchh sch jo tumne likha hai.
jeeti rho. likhti rho.